इस लेख में आप Rashtrasant Tukdoji Maharaj – एक महान महापुरुष राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज इससे सम्बंदित जानकारी जानेंगे.
दोस्तों राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने देश के हित के लिए अपने भजनों, कीर्तनों तथा भाषणों से देश में फैली बुराइयों को रोका है. ऐसे महानपुरुष राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज (Rashtrasant Tukdoji Maharaj) ने देश के कल्याण के लिए राष्ट्रीय जागरण का महान कार्य किया है.
तो आइए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं महापुरुष राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज (Rashtrasant Tukdoji Maharaj) के बारे में विस्तार से हिंदी में.
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज (Rashtashant Tukdoji Maharaj)
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज (Rashtrasant Tukdoji Maharaj) का पूरा नाम माणिक बान्डोजी इंगळे था. और उनके पिता का नाम बंडोजी तथा उनकी माता का नाम मंजुलाबाई था. तुकडोजी महाराज का जन्म 30 अप्रैल 1909 को यावली गांव जि. अमरावती में हुआ था.
हालांकि उनका निधन 11 ऑक्टोबर 1968 को हुवा. राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के गुरु का नाम आडकोजी महाराज है. इनका उद्देश भाषा: मराठी, हिंदी: साहित्य, ग्रामगीता, अनुभव भजनावली, सेवा स्वधर्म, राष्ट्रीय भजनावली, और कार्य, काम आँख बंद करके उन्मूलन, जातिगत भेदभाव को समाप्त करना था.
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज को महाराष्ट्र का एक महान संत माना जाता है. क्योंकि वे स्वयंसिध्द एक संत थे. उनका प्रारंभिक जीवन आध्यात्मिक और योग साधनाओं से भरा था. इसलिए उन्होंने अपना अधिकांश प्रारंभिक जीवन रामटेक सालेबर्डी, रामदिघी, गोंदोडा के बीहड़ जंगल में बिताया था. तुकडोजी महाराज अडकोजी महाराज के शिष्य थे, और वे अपने गुरु के मार्ग पर महाराष्ट के ग्रामीण विभाग में समाज सुधार कर रहे थे.
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने ग्रामगीता लिखकर बहुत अच्छा काम किया हालाँकि उन्होंने औपचारिक रूप से अधिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, लेकिन उनकी आध्यात्मिक भावना और क्षमता बहुत उच्च स्तर की थी. उनके भक्ति गीतों में भक्ति तथा नैतिक मूल्यों की एक अलग ही विस्तृत श्रृंखला है.
उनका खँजरी, एक पारंपरिक वाद्य यंत्र, बहुत ही अनोखा था और जिस तरह से उन्होंने इसे बजाया वह अपने आप में अनोखा था. हालांकि वह अविवाहित थे, लेकिन उनका पूरा जीवन जाति, वर्ग, पंथ या धर्म के बावजूद समाज की सेवा के लिए समर्पित था. वे पूरी तरह से आध्यात्मिक जीवन में लीन थे. उन्होंने मनुष्य के स्वभाव का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया, ताकि वह उत्थान के पथ पर अग्रसर हो सके. राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के महान कार्य को देखते हुए भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा वर्ष 1955 में राष्ट्र संत का किताब दिया गया था.
उनके पास आत्म-साक्षात्कार की दृष्टि थी. इसलिए तो उन्होंने जीवन भर हृदय की पवित्रता का पाठ पढ़ाया और किसी के प्रति दुर्भावना नहीं रखी और वे अपने प्रारंभिक जीवन में अक्सर भक्ति गीत गाते थे, हालांकि समय बीतने के साथ उन्होंने समाज को बताया कि भगवान केवल मंदिर, चर्च या मस्जिद में नहीं होता है, वे तो हर जगह व्याप्त है. भगवान की शक्ति असीम है. ऐसे उन्होंने अपने अनुयायियों को आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर चलने की सलाह दी. उन्होंने पुरोहितवाद का पुरजोर विरोध किया और आंतरिक मूल्यों और सार्वभौमिक सत्य का प्रसार किया.
तुकडोजी महाराज ने सामुदायिक प्रार्थना पर जोर दिया जिसमें जाति धर्म से परे लोग भाग ले सकते है. उनकी प्रार्थना का तरीका वास्तव में पूरी दुनिया में अद्वितीय और अतुलनीय था. लेकिन उन्होंने दावा किया कि उनकी सामूहिक प्रार्थना प्रणाली समाज को भाईचारे और प्रेम की एक श्रृंखला में बांधने में सक्षम है.
Early life
पूजनीय राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज का जन्म 30 अप्रैल 1909 को भारत के महाराष्ट्र राज्य के अमरावती जिले के यावली नामक एक सुदूर गाँव में एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा यावली और वरखेड़ में पूरी की थी. लेकिन वे अपने प्रारंभिक जीवन में कई महान संतों के संपर्क में आए और उस समय आडकोजी महाराज ने उन पर अपना स्नेह बरसाया और उन्हें योग शक्तियों का आशीर्वाद दिया.
1935 में राष्ट्संत तूकडोजी महाराज ने सालबर्दी की पहाड़ियों पर महारुद्र यज्ञ का आयोजन किया. जिसमें तीन लाख से अधिकतर लोगों ने हिस्सा लिया. इस बलिदान के बाद उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली और पूरे मध्य प्रदेश में उनका सम्मान हुआ.
सन 1936 में उन्हें महात्मा गांधी ने सेवाग्राम आश्रम में आमंत्रित किया, जहां वे लगभग एक महीने तक रहे. उसके बाद तूकडोजी ने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में जन जागरूकता का कार्य शुरू किया. जो 1942 के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में परिलक्षित हुआ. जो राष्ट्रसंत तुकडोजी के आह्वान का परिणाम था. लेकिन अष्टी, चिमूर स्वतंत्रता संग्राम के कारण, उन्हें अंग्रेजों ने चंद्रपुर में गिरफ्तार कर लिया गया और नागपुर तथा रायपुर में उन्हें 100 दिनों के लिए 28 आगस्त से 02 दिसंबर 1942 तक जेल में रखा गया था.
राष्ट्रसंत तूकडोजी महाराज जेल से रिहा होने के बाद तूकडोजी महाराज ने समाज सुधार आंदोलन चलाकर अंधविश्वास, छुआछूत, झूठे धर्म, गोहत्या और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. और उन्होंने नागपुर से 120 किमी दूर मोझरी नामक गाँव में गुरुकुंज आश्रम की स्थापना की, जहाँ उनके अनुयायियों की सक्रिय भागीदारी के साथ संरचनात्मक कार्यक्रम किए जाते थे. आश्रम के प्रवेश द्वार पर उनके सिद्धांत इस प्रकार अंकित हैं इस मंदिर के द्वार सभी के लिए खुले हैं”, “यहां सभी धर्मों और पंथों के लोगों का स्वागत है”, “यहां देश-विदेश से सभी का स्वागत है”
आजादी के बाद तुकडोजी ने अपना पूरा ध्यान ग्रामीण पुनर्निर्माण कार्यों में लगा दिया और रचनात्मक लोगों के लिए कई कार्यों का निर्माण किया. विभिन्न प्रकार के शिविरों का आयोजन किया. उनकी गतिविधियाँ अत्यधिक प्रभावशाली थीं और राष्ट्रीय हित से जुड़ी थीं. भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गुरुकुंज आश्रम में एक विशाल समारोह में उन्हें अपना स्नेह समर्पित करते हुए उन्हें “राष्ट्रसंत” के सम्मान से सम्मानित किया. तभी से लोग उन्हें “राष्ट्रसंत” के नाम से बड़े सम्मान से बुलाने लगे.
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज (Rashtrasant Tukdoji Maharaj) ने अपने अनुभवों और अंतर्दृष्टि के आधार पर राष्ट्रसंत ने ग्रामगीता की रचना की, जिसमें उन्होंने ग्रामीण भारत के विकास के लिए एक बिल्कुल नया विचार प्रस्तुत किया, जो वर्तमान परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करता है.
1955 में उन्हें विश्व धर्म संसद और जापान में होने वाले विश्व शांति सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था. दोनों सम्मेलनों का उद्घाटन राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज द्वारा खँजरी के गायन के साथ किया गया और वह भी सम्मेलन हॉल में मौजूद हजारों दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट के साथ.
उसके बाद भारत में साधु संत समाज का आयोजन 1956 में राष्ट्रसंत तूकडोजी महाराज द्वारा किया गया था, जिसमें विभिन्न संप्रदायों, और धार्मिक संस्थानों के प्रमुखों की सक्रिय भागीदारी देखी गई थी. और यह स्वतंत्र भारत का पहला संत संगठन था, जिसके पहले अध्यक्ष तुकडोजी महाराज थे.
1956 से 1960 के वर्षों के दौरान, उन्हें विभिन्न सम्मेलनों को संबोधित करने या आयोजित करने के लिए आमंत्रित किया गया था. उनमें से कुछ सम्मेलन हैं भारत सेवक समाज सम्मेलन, हरिजन सम्मेलन, विदर्भ साक्षरता सम्मेलन, अखिल भारतीय वेदांत सम्मेलन, आयुर्वेद सम्मेलन आदि. वह विश्व हिंदू परिषद के संस्थापक उपाध्यक्षों में से एक थे.
साथ ही उन्होंने बंगाल के महान अकाल (1945), चीन के साथ युद्ध (1962) और पाकिस्तान आक्रमण (1965) जैसे राष्ट्रीय मुद्दों के कई मोर्चों पर तुरंत अपनी भूमिका निभाई. कोयना भूकंप त्रासदी (1962) के दौरान, राष्ट्रसंत ने प्रभावित लोगों की त्वरित सहायता के लिए अपने मिशन को अंजाम दिया और कई संरचनात्मक राहत कार्यों का आयोजन किया.
साहित्यिक योगदान
उनका साहित्यिक सामग्री निर्माण अधिक और उच्च श्रेणी का है. इसलिए उन्होंने हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में तीन हजार भजन, दो हजार अभंग पांच हजार ओविस लिखे, इसके अलावा धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय तथा औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा पर छह सौ से अधिक लेख लिखे.
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज (Rashtrasant Tukdoji Maharaj) अपने आप में एक चमकता सितारा और एक गतिशील नेता थे. इसलिए तो वे अनेक कलाओं और कौशलों के ज्ञान दाता थे. क्योंकि उन्हें आध्यात्मिक क्षेत्र में उन्हें एक महान योगी के रूप में जाना जाता था. जबकि सांस्कृतिक क्षेत्र में उन्हें एक शानदार वक्ता और संगीतकार के रूप में जाना जाता था.
उनका व्यक्तित्व अतुलनीय और अद्वितीय था. और उनके व्यक्तित्व के कई पहलू थे और उनकी शिक्षाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए चिरस्थायी और उपयोगी हैं. लेकिन आखरी बार राष्ट्रसंत तुकोडजी को अंतिम दिनों में कैंसर का पता चला था. उस घातक बीमारी को ठीक करने के लिए हर संभव उपाय किए गए, लेकिन कोई भी प्रयास सफल नहीं हुआ. और अंत में 11 अक्टूबर, 1968 को शाम 4.58 बजे, राष्ट्रसंत ने अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया और गुरुकुंज आश्रम में ब्रह्मनील हो गए. लेकिन आज भी उनकी महासमाधि गुरुकुंज आश्रम के ठीक सामने स्थित है, जो सभी को कर्तव्य और निस्वार्थ भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है. ऐसे हमारे महापुरुष परम पूज्य राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज (Rashtrasant Tukdoji Maharaj) हमारे देश के लिए महान व्यक्ति थे.
अंतिम शब्द
दोस्तों इस लेख में मैंने हमारे देश के महान महापुरुष राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज – Rashtrasant Tukdoji Maharaj के बारे में जानकारी बताई है. मुझे उम्मीद है कि राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज से जुड़ी जानकारी आपको पसंद आई होगी. अगर हाँ, तो इस लेख को अपने दोस्तों से जरुर शेयर करे. धन्यवाद.
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