Sant Gadge Maharaj Ki Jankari – दोस्तों आज के इस लेख में हम आपको एक महान महापुरुष संत गाडगे महाराज से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं.
दोस्तों अगर महापुरुष संत गाडगे महाराज (Sant Gadge Maharaj) की बात करें, तो वे हमारे देश के लिए एक समाज सुधारक थे. हालांकि वे एक खानाबदोश भिक्षु थे, फिर भी वे महाराष्ट्र में सामाजिक विकास के लिए साप्ताहिक उत्सवों का आयोजन करते थे.
इसलिए महापुरुष संत गाडगे महाराज (Sant Gadge Maharaj) के कहे शब्दों के अनुसार भारत के कई ग्रामीण भागों में सुधार देखने को मिला है. और आज के समय में कई राजनीतिक दल तथा सामाजिक संस्थाएं उनके कार्यों से आज भी प्रेरणा ले रही हैं. तो आइए जानते हैं, एक महान महापुरुष संत गाडगे महाराज (Sant Gadge Maharaj) के बारे में जानकारी विस्तार से हिंदी में.
Sant Gadge Maharaj
संत गाडगे महाराज की संपूर्ण जानकारी (Complete information of Sant Gadge Maharaj in Hindi)
संत गाडगे महाराज (Sant Gadge Maharaj) की बात करें, तो उन्हें प्यार से गाडगे बाबा के नाम से पुकारा जाता था. हालांकि उनका वास्तविक नाम देवीदास देबूजी जनोरकर था और उनके पिता का नाम झिंगराजी जनोरकर तथा उनकी माता का नाम सखुबाई था. संत गाडगे महाराज का जन्म 23 फरवरी 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के अंजनगांव सुरजी तालुका के शेडगांव गांव में एक धोबी परिवार में हुआ था. उने बचपन का नाम देबूजी झिंगरजी जानोरकर के नाम से भी बुलया करते थे और इसी नाम से 23 फरवरी को उनका जन्मदिन मनाया जाता है.
उन्होंने शिक्षा के बारे में ऐसे कई महान कार्य किए है. इसलिए तो उन्हें मानवता का सच्चा हितैषी,सामाजिक समरसता का अवतार माना जाता है. क्योंकि उन्होंने कई गांवों का विकास किया है और उनकी दूरदृष्टि आज भी देश भर के कई धर्मार्थ संगठनों, शासकों तथा राजनेताओं को प्रेरित करती है.
इसीलिए महापुरुष संत गडगेबाबा के नाम पर कॉलेज और स्कूल सहित कई संस्थान शुरू किए गए हैं. और उनके बाद भारत सरकार द्वारा स्वच्छता और पानी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा की गई. और उनके सम्मान में अमरावती विश्वविद्यालय का नाम भी रखा गया है. इसलिए उनके सम्मान में महाराष्ट्र सरकार द्वारा “संत गडगेबाबा ग्राम स्वच्छता अभियान” शुरू किया गया.
संत गाडगे महाराज की जीवनी (Biography of Sant Gadge Maharaj)
संत गाडगे महाराज का जन्म 23 फरवरी 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के अंजनगांव सुरजी तालुका के शेडगांव में एक गरीब धोबी परिवार में हुआ था. गाडगे महाराज एक भटकते हुए सामाजिक शिक्षक थे. और वह पैरों में फटी चप्पल तथा सिर पर मिट्टी का कटोरा लेकर पैदल यात्रा करता थे. और यही उनकी पहचान थी.
संत गाडगे महाराज गाँव में प्रवेश करते ही गाडगे महाराज तुरंत नालों तथा रास्तों की सफाई शुरू कर देते थे और काम खत्म होने के बाद वे गाँव वालो को सफाई के लिए लोगों को बधाई भी दिया करते थे.
हालांकि गाँव के लोग उन्हें पैसे देते थे. लेकिन संत गाडगे महाराज उन पैसो का इस्तेमाल समाज के सामाजिक विकास तथा शारीरिक विकास के लिए करते थे. और साथ ही लोगों से मिलने वाले पैसे से गाडगे महाराज गाँवों में स्कूल, धर्मशालाएँ, अस्पताल तथा पशु के लिए निवास स्थान बनवाते थे. और वे अपने कीर्तन के माध्यम से समाज कल्याण का प्रचार करते थे.
संत गाडगे बाबा सच्चे निस्वार्थ कर्मयोगी थे. और उन्होंने महाराष्ट्र के कोने-कोने में कई धर्मशालाएं, गौशालाएं, स्कूल, अस्पताल और हॉस्टल बनवाए हैं. हालांकि उन्होंने यह सब भिक्षा मांग कर देश और प्रजा के हित के लिए बनवाया, लेकिन अपने लिए एक झोपड़ी भी नहीं बना सके, ऐसे हमारे महापुरुष संत गाडगे महाराज ने अपना पूरा जीवन देश के कल्याण के लिए पेड़ के नीचे बिताया.
संत गाडगे महाराज की एक सच्ची कहावत
महापुरुष संत गाडगे बाबा का कहना हैं कि शिक्षा बहुत बड़ी चीज है. इसलिए मन लगाकर पढ़ाई करते रहो, लेकिन बच्चों को पढ़ाए बिना मत रहो ताकि आधुनिक भारत को जिन महापुरुषों पर गर्व होना चाहिए, उनमें राष्ट्रीय संत गाडगे बाबा का नाम सबसे महत्वपूर्ण है.
मानवता के सच्चे हितैषी अन्य संतों की तरह गाडगे बाबा को भी औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर नहीं मिला. स्वाध्याय के बल पर उन्होंने थोड़ा पढ़ना-लिखना सीख लिया था.
इसीलिए गाडगे बाबा शिक्षा पर बहुत जोर देते थे लोगो पर उन्होंने शिक्षा के महत्व को इस हद तक प्रतिपादित किया कि अगर खाने की थाली भी बेचनी पड़े तो उसे भी बेचकर शिक्षा प्राप्त करें. आप हाथ में रोटी लेकर खाना खा सकते हैं, लेकिन शिक्षा के बिना जीवन अधूरा है. अपने प्रवचनों में शिक्षा का उपदेश देते समय वे डॉ. अम्बेडकर को एक उदाहरण के रूप में यह कहते हुए प्रस्तुत करते थे.
बाबासाहेब आम्बेडकर ने अपनी महत्वाकांक्षा से कितना पढ़ा. शिक्षा एक श्रेणी का अनुबंध नहीं है एक गरीब बच्चा भी अच्छी शिक्षा लेकर बहुत सी डिग्री प्राप्त कर सकता है. गाडगे बाबा ने अपने समाज में शिक्षा का प्रकाश फैलाने के लिए 31 शिक्षण संस्थानों और सौ से अधिक अन्य संस्थानों की स्थापना की. और बाद में सरकार ने इन संस्थानों के रखरखाव के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया.
गांव के लोग संत गाडगे महाराज को जो भी पैसे दिया करते है थे वे उस पैसे का इस्तेमाल समाज के सामाजिक विकास और शारीरिक विकास के लिए करते रहे और लोगों से प्राप्त धन से महाराज गाँवों में स्कूल, धर्मशालाएँ, अस्पताल तथा पशु आवास बनवाते थे.
गांव की सफाई के बाद वह शाम को कीर्तन का आयोजन करते थे और अपने कीर्तन के माध्यम से वह लोगों में परोपकार और सामाजिक कल्याण का प्रसार करते थे. अपने कीर्तन के दौरान उन्होंने लोगों को अंधविश्वास की भावनाओं के खिलाफ शिक्षित किया और उन्होंने कीर्तन में संत कबीर के दोहे भी इस्तेमाल किए और अपने जीवन में इस महापुरुष ने अपने लिए कुटिया भी नहीं बनाई और उन्होंने अपना सारा जीवन धर्मशालाओं के बरामदे में या पास के किसी पेड़ के नीचे बिताया था.
गुरुदेव आचार्य जी ने ठीक ही कहा है कि एक लकड़ी, फटी-पुरानी चादर और मिट्टी का घड़ा खाने-पीने और कीर्तन के समय आवरण का काम करता था यही उनकी संपत्ति थी इसी वजह से उन्हें महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में मिट्टी के बर्तनों वाले गाडगे बाबा और चीथड़े-गोदड़े वाले बाबा के नाम से पुकारा जाता था. इसलिए उनका वास्तविक नाम आज तक किसी को ज्ञात नहीं है.
हालाँकि बाबा अनपढ़ थे, फिर भी वे एक महान बुद्धिजीवी थे. पिता की मृत्यु के कारण उन्हें बचपन से ही अपने नाना के साथ रहना पड़ा वहां उन्हें गायों को चराना और खेती करना था. वे 1905 से 1917 तक निर्वासन में रहे बीच-बीच में उन्होंने जीवन को बहुत करीब से देखा. अंधविश्वास, बाहरी आडंबर, रीति-रिवाजों और सामाजिक बुराइयों और व्यसनों से समाज को कितना भयानक नुकसान हो सकता है उन्होंने इसका बहुत अच्छा अनुभव किया. इसलिए उन्होंने उनका कड़ा विरोध किया.
संत गाडगे महाराज (Sant Gadge Maharaj) के जीवन का एकमात्र लक्ष्य
संत गाडगे बाबा के जीवन का एकमात्र लक्ष्य जनसेवा था. उन्होंने गरीबों और दलितों और उपेक्षितों की सेवा को केवल भगवान की भक्ति माना. उन्होंने धार्मिक दिखावे का कड़ा विरोध किया उनका मानना था कि ईश्वर न तीर्थों में है, न मंदिरों में और न मूर्तियों में. मानव समाज में भगवान दरिद्र नारायण के रूप में विद्यमान हैं मनुष्य को चाहिए कि वह इस ईश्वर को पहचान कर तन, मन और धन से उसकी सेवा करे. भूखे को भोजन, प्यासे को पानी, नग्न को वस्त्र, निरक्षरों को शिक्षा, अनुपयोगी को काम, निराश्रित को आराम और मूक प्राणियों को निर्भयता प्रदान करना ही ईश्वर की सच्ची सेवा है.
इसके अतिरिक्त संत गाडगे महाराज ने तीर्थ स्थलों पर कई बड़ी-बड़ी धर्मशालाएं स्थापित की थी. ताकि गरीब यात्रियों को वहां मुफ्त में आवास मिल सके. नासिक में उनकी विशाल धर्मशाला है जहाँ एक बार में 500 यात्री ठहर सकते हैं. वहा यात्रियों को मुफ्त सिगडी, बर्तन आदि उपलब्ध कराने की भी व्यवस्था है.
संत गाडगे महाराज के जीवन का एकमात्र लक्ष्य गरीब जनते कि सेवा करना था. क्योंकि उन्होंने गरीबों, दलितों तथा उपेक्षितों की सेवा को केवल भगवान की भक्ति माना. उन्होंने धार्मिक दिखावे का कड़ा विरोध किया. क्योंकि उनका मानना था कि ईश्वर न तीर्थों में है, न मंदिरों में और न मूर्तियों में वे तो केवल मानव समाज में भगवान दरिद्र नारायण के रूप में विद्यमान हैं.
वे कहते थे कि तीर्थ में जितने भी पुजारी हैं, सब भ्रष्ट हैं. वह धर्म के नाम पर पशु बलि के भी विरोधी थे. इतना ही नहीं, वह नशाखोरी, अस्पृश्यता और मजदूरों और किसानों के शोषण जैसी सामाजिक बुराइयों के भी प्रबल विरोधी थे. संत-महात्माओं के पैर छूने की प्रथा आज भी प्रचलित है, लेकिन संत गाडगे बाबा इसके प्रबल विरोधी थे.
हालांकि संत गाडगे महाराज को अपमानित होना पड़ा लेकिन उन्होंने अपने रास्ते पर चलना बंद नहीं किया और स्वच्छता भजन कीर्तन के माध्यम से समाज को जगाने के लिए गांव-गांव जाना बंद नहीं किया गाडगे बाबा ने 1 फ़रवरी 1905 को 29 साल की उम्र में गृहत्याग किया और अपने कार्य को पूरा किया. इसलिए आज उनके कार्य को पुरे विश्व में ग्राम स्वछता अभियान के नाम से जाना जाता है.
संत गाडगे महाराज द्रारा स्थापित “गाडगे महाराज मिशन” आज भी समाज सेवा में लगा हुआ है. 20 दिसंबर 1956 को मध्य रात 12.30 बजे मानवता के महान उपासक की मृत्यु हो गई. संत गाडगे महाराज पर, प्रसिद्ध संत तुकडोजी महाराज ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए, उनकी एक पुस्तक की भूमिका में, मानवता के मूर्त आदर्श के रूप में उनका प्रतिनिधित्व करते हुए उनकी पूजा की.
महापुरुष संत गाडगे महाराज ने इस तरह अपना पूरा जीवन मानव कल्याण के लिए समर्पित कर दिया. ऐसे राष्ट्रसंत गाडगे महाराज एक सच्चे निस्वार्थ कर्मयोगी थे. ऐसे महान महापुरुष संत गाडगे महाराज आज भी गांव-गांव तथा लोंगो के दिलो में जिन्दा है. ऐसे महान महापुरुष संत गाडगे महाराज (Sant Gadge Maharaj) को कोटि कोटि प्रणाम.
अंतिम शब्द
दोस्तों इस लेख में महान महापुरुष Sant Gadge Maharaj – संत गाडगे महाराज से जुड़ी जानकारी बताई है. मुझे उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी.
अगर आपको समाज सेवक और लोंगो के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले संत गाडगे महाराज की जानकारी अच्छी लगी हो, तो इस लेख को अपने दोस्तों तथा अन्य लोंगो के साथं जितना हो सके शेयर करे. धन्यवाद.
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