Subhash Chandra Bose Jayanti Aur Unki Vishesh Jankari – इस लेख में हम सुभाष चंद्र बोस जयंती से जुड़ी खास महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं.
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक और आजाद हिंद सेना के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस, जिन्होंने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” और साथ ही “जय हिंद” जैसे नारों के साथ आजादी के लिए संघर्ष किया. ऐसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक सुभाष चंद्र बोस की 128वीं जयंती मंगलवार 23 जनवरी 2024 को मनाई जाएगी.
तो आइए आगे विस्तार से जानते हैं सुभाष चंद्र बोस जयंती (Subhash Chandra Bose Jayanti) और उनकी खास जानकारी हिंदी में.
Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti पर नमन
मेरे पास एक लक्ष्य है
जिसे मुझे हर हाल में
पूरा करना है
मेरा जन्म उसी के लिए हुवा है
मुझे नैतिक विचारों की धारा में
नही बहना है
सुभाष चंद्र बोस जयंती पर उनकी विशेष जानकारी
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक और आजाद हिंद सेना के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक, उड़ीसा, बंगाल डिवीजन में हुआ था. उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और उनकी माता का नाम प्रभावती था. सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) के पिता जानकीनाथ बोस कटक शहर के जाने-माने और काफी मशहूर वकील थे.
जानकीनाथ बोस और प्रभावती को कुल मिलाकर 14 संतानें थी. जिसमें 6 बेटियां और 8 बेटे थे, जिसमें से सुभाष चंद्र बोस उनकी 9वीं संतान और 5वें पुत्र थे.
सुभाष चंद्र बोस ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल से की, जिसके बाद नेताजी ने वर्ष 1913 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता में दाखिला लिया, जिसके बाद 1915 में उन्होंने प्रथम श्रेणी के साथ इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता ने उन्हें भारतीय सिविल सेवा यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया.
उस समय भारत की इस परीक्षा को पास करना बहुत कठिन था. उसके बावजूद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने भारतीय प्रशासनिक परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया. लेकिन जब उन्हें 1921 में भारत में राजनीतिक गतिविधियां बढ़ने लगीं. यह खबर सुनकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय प्रशासनिक सेवा को बीच में ही छोड़कर भारत लौट आए और फिर बाद में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए.
सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) अपनी विशिष्टता तथा अपने व्यक्तित्व और उपलब्धियों के कारण भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम पच्चीस वर्षों के दौरान उनकी भूमिका एक सामाजिक क्रांतिकारी की थी और वे एक अद्वितीय राजनीतिक योद्धा के रूप में उभरे
नेताजी सुभाष चंद्र बोस 1921 में पहली बार महात्मा गांधी से मिले थे, जब नेताजी ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में संबोधित किया था. जब महात्मा गांधी पार्टी का नेतृत्व करते थे, तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे. इसलिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के विचारों से असहमत थे.
हालांकि दोनों का मकसद भारत को आजादी दिलाना ही था, लेकिन सुभाष चंद्र बोस जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना से काफी विचलित थे. क्योंकि नेताजी का मानना था कि अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए एक मजबूत क्रांति की जरूरत है. और जबकि गांधी अहिंसक आंदोलन में विश्वास करते हैं. इसलिए भारत को आजादी दिलाने के लिए दोनों की विचारधारा अलग-अलग थी.
अपनी ताकत पर भरोसा करो
उधार की ताकत तुम्हारे लिए घातक है
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) की हर जगह सराहना हुई थी. इसलिए वे जल्द ही एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए थे. सुभाषबाबू ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर कांग्रेस के तहत यूथ इंडिपेंडेंस लीग की शुरुआत की लेकिन सुभाष चंद्र बोस के गर्म खून और तीखे रवैये के कारण कांग्रेस उन्हें ज्यादा पसंद नहीं करती थी और गांधी और नेताजी बोस के बीच दरार के कारण सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस छोड़नी पड़ी थी.
हालांकि सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियाई लड़की से शादी की, जिसके बाद उनकी एक बेटी हुई जिसका नाम अनीता था.
कांग्रेस छोड़ने के बाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 3 मई 1939 को कलकत्ता में फॉरवर्ड ब्लॉक यानी फॉरवर्ड पार्टी की स्थापना की और सितंबर 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ. जिसमें ब्रिटिश सरकार सुभाष के युद्ध-विरोधी आंदोलन से डर गई और उसे गिरफ्तार कर लिया गया.
लेकिन 1940 में सुभाष चंद्र बोस को ब्रिटिश सरकार ने उनके घर पर नजरबंद कर दिया था. लेकिन नेताजी अदम्य साहस और सूझबूझ दिखाते हुए सारे अंग्रेजों को चकमा देते हुए घर से भाग निकले.
सुभाष चंद्र बोस, एक मुस्लिम मौलवी के वेश में, पेशावर, अफगानिस्तान के रास्ते बर्लिन गए. बर्लिन में, उन्होंने जर्मनी के तत्कालीन तानाशाह हिटलर से मुलाकात की और भारत को स्वतंत्र बनाने के लिए जर्मनी और जापान से मदद मांगी. जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन के साथ ‘आजाद हिंद रेडियो’ की स्थापना की.
21 अक्टूबर 1943 को, सुभाष चंद्र बोस ने “आजाद हिंद सरकार की स्थापना” की और अपने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए आजाद “हिंद फौज का गठन” किया. जिसके बाद सुभाष चंद्र बोस 4 जुलाई 1944 को अपनी सेना के साथ बर्मा (अब म्यांमार) पहुंचे. यहां उन्होंने भारत के लोगों को “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का नारा दिया.
हमारा कार्य केवल कर्म करना है
कर्म ही हमारा कर्तव्य है
फल देने वाला स्वामी उपर है
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जापानी सेना के समर्थन से आजाद हिंद फौज ने भारतीय औपनिवेशिक सरकार पर हमला किया. अपनी सेना को प्रेरित करने के लिए नेताजी ने “दिल्ली चलो” का नारा दिया. दोनों सेनाओं ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को अंग्रेजों से जीत लिया, लेकिन अंत में अंग्रेजों के मुकाबलों में आजाद हिंद फौज को पीछे हटना पड़ा.
18 अगस्त 1945 को, नेताजी सुभाष चंद्र बोस उस यात्रा के दौरान विमान से मंचूरिया की ओर लापता हो गए थे. और इस दिन के बाद उसे कभी किसी ने नहीं देखा. लेकिन 23 अगस्त 1945 को जापान के दोमेई समाचार संगठन ने दुनिया को खबर दी कि 18 अगस्त को नेताजी का हवाई जहाज ताइवान की धरती पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था जिस वजह से उस दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो चुके थे जिस दौरान उन्हें अस्पताल ले जाया गया था. जिसके के बाद नेताजी ने अस्पताल में अंतिम सांस ली थी.
आजादी के बाद, भारत सरकार ने इस घटना की जांच के लिए 1956 और 1977 में दो बार आयोगों का गठन किया. लेकिन दोनों ही बार यह निष्कर्ष निकला कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही मारे गए थे.
लेकिन समय-समय पर उनकी मौत को लेकर कई आशंकाएं जताई जा रही हैं. भारत के महान स्वतंत्रता सेना की मृत्यु का रहस्य आज तक रहस्य बना है.
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और ऐसे महान नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस कि जयंती (Subhash Chandra Bose Jayanti) पर हमारी ओर से भावपूर्ण श्रद्धांजलि.
दोस्तों इस लेख में मैंने Subhash Chandra Bose Jayanti Aur Unki Vishesh Jankari के बारे बताया है. मुझे उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी. अगर आप इस जानकारी को Subhash Chandra Bose Jayanti पर अपने दोस्तों को भेजना चाहते है, तो आप Subhash Chandra Bose Jayanti पर इस लेख को अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते है.
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